आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के विशेषज्ञों ने बुधवार को घरेलू स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन और तैनाती की खराब योजना के लिए सरकार की आलोचना की, जिसके फलस्वरूप भारत के पास लगाने के लिए पर्याप्त टीके नहीं हैं।
आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के विशेषज्ञों ने बुधवार को घरेलू स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन और तैनाती की खराब योजना के लिए सरकार की आलोचना की, जिसके फलस्वरूप भारत के पास लगाने के लिए पर्याप्त टीके नहीं हैं। विशेषज्ञों ने ऑनलाइन जर्नल बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक टिप्पणी में कहा, ” हालांकि कोवैक्सिन और कोविशील्ड टीकों के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि करने की योजना है, लेकिन इस साल लगभग एक अरब लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य अभी भी पूरा नहीं किया जा सकता है।”
अब तक केवल 3 प्रतिशत आबादी को ही टीका लगाया गया है। विशेषज्ञों ने सरकार से दुनिया भर में लगाए जा रहे विदेशी टीकों की मंजूरी में तेजी लाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “जैसा कि कोविड -19 वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा में दोनों खुराक के बाद कम से कम दो सप्ताह लगने की उम्मीद है, और बड़ी मांगों के साथ, भारत को आने वाले दिनों और हफ्तों में संक्रमणों में मौजूदा वृद्धि को रोकने के लिए टीकों के कई और स्रोतों की आवश्यकता होगी।”
इसके अलावा, कवरेज का विस्तार करने के लिए, सरकार ने निजी अस्पतालों को टीकाकरण की अनुमति दी है, जो लगभग 220 रुपये से 1,098 रुपये तक कुछ भी चार्ज करते हैं, जिसका अर्थ है कि बहुत कम लोग इसे वहन कर सकते हैं।
उन्होंने सरकार से भारत में सभी के लिए कोरोनवायरस के खिलाफ टीके मुफ्त बनाने का आग्रह किया, जो न केवल टीकाकरण को बढ़ावा देगा बल्कि संक्रमण से होने वाली मौतों को भी रोकेगा।
केंद्र और राज्यों के बीच टीकों के अलग-अलग मूल्य निर्धारण पर, विशेषज्ञों ने कहा कि यह भारत में गंभीर संकट के समय सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और असमान वितरण और संभावित रूप से सार्वजनिक अविश्वास को बढ़ावा देगा।
विशेषज्ञों ने कहा कि वयस्कों के लिए टीकाकरण के लिए मोबाइल ऐप के माध्यम से सरकार द्वारा अनिवार्य पूर्व-पंजीकरण भी संभव नहीं है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल एक तिहाई लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है। इसके बजाय, एक साधारण टीकाकरण कार्ड एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
लेकिन रामदेव का एक और वीडियो सामने आया जिसमें वह यह कहते सुने जा सकते हैं कि एलोपैथी ‘स्टुपिड साइंस’ है। तीसरे वीडियो में वह किसी व्हाट्सएप मैसेज को पढ़ते देखे जा सकते हैं। इसमें वह कहते हैं कि वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद भी हजारों डॉक्टरों की मृत्यु हो गई है। वह इस पर आश्चर्य जताते हैं कि ये कैसे डॉक्टर हैं जो खुद का इलाज भी नहीं कर सकते। एक अन्य वीडियो में वे उन लोगों से बात करते दिखते हैं जिनके मित्र-परिचित-रिश्तेदार कोविड की वजह से अस्पतालों में जान गंवा बैठे हैं। स्वाभाविक ही ये लोग दुख में भरे हैं और बता रहे हैं कि अच्छे अस्पतालों, डॉक्टरों और दवाओं के बावजूद वे लोग अपने लोगों की जान नहीं बचा पाए।
आईएमए ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बताया है कि पहली लहर में 753 डॉक्टरों को अपनी जान गंवानी पड़ी और इनमें से किसी को कोई वैक्सीन नहीं लगी थी। दूसरी लहर में भी जिन 513 डॉक्टरों की मृत्यु हुई है, उनमें से अधिकांश को विभिन्न कारणों से वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लगी थी। चिट्ठी में बताया गया है कि जिन लोगों को वैक्सीन लगाए गए हैं, उनमें से 0.6 प्रतिशत लोग ही अब तक संक्रमित हुए हैं। आईएमए का कहना है कि इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान देकर रामदेव वैक्सीन, डॉक्टरों और आधुनिक दवाओं को लेकर संदेह पैदा कर रहे हैं और उन्हें रोकने की जरूरत है।
डॉक्टरों ने ये बातें उठाते हुए ये आशंकाएं सही ही जताई हैं कि मॉडर्न मेडिसिन पर सवाल उठाकर रामदेव ने हेल्थ वर्करों के जीवन को खतरे में डाल दिया है। किसी की मौत हो जाने पर उसके मित्र-परिचित-रिश्तेदार डॉक्टरों, सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, वैक्सीन देने वालों पर हमले भी कर सकते हैं। डॉक्टरों का यह कहना भी उचित ही है कि जब लॉकडाउन में सभी तरह के कार्यक्रमों पर रोक है, तब रामदेव को योग शिविर करने-लगाने की अनुमति किस आधार पर दी गई है।
ये सब बातें ऐसी हैं जो रामदेव के खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार हैं। सोशल मीडिया पर इस तरह की बातें दूसरे लोग अगर करते हैं, तो उन पर कार्रवाई भी हो रही है। पर रामदेव पर ऐसा कुछ होने की संभावना अब तक तो नहीं ही दिख रही है।
मीडिया में रामदेव के खिलाफ बहुत कुछ न छपने-दिखाने की बड़ी वजह यह है कि पतंजलि समूह बड़ा विज्ञापनदाता है। उसे सरकार का संरक्षण भी प्राप्त है इसलिए मुख्यधारा का मीडिया उसके खिलाफ कुछ छापने-दिखाने से कतराता है।
रामदेव पर कोई शोरगुल या कार्रवाई न होने की वजह यही है।