हम क्यों नहीं बोल सकते की 7 सालों में देश में तानाशाही अपने चरम पर है। फादर स्टेन स्वामी मोदी की नज़रों में आतंकवादी थे क्योंकि वह आदिवासियों के लिए लड़ते थे। हक़ के लिए लड़ना आतंकवाद है, और कुर्सी के लिए बेगुनाहों का खून बहाना देशभक्ति है। कथित तौर पर गुजरात 2002 जिसमे मोदी ने अपना भगवा आतंकवाद का असली रूप दिखाया था बेगुनाहों को बीच चौराहे पर ला कर जिन्दा लोगों को जलाया गया, गर्भवती औरतों के पेट चीर कर भूर्ण निकाल कर आग में झोंक दिया गया। पूरे गुजरात के नरसंहार से भारत का दुनिया भर में नाम धूमिल किया गया और फिर एक नरसंहारी आतंकवादी को भारत के कटटर हिन्दुओं ने अपनी नस्लों के भविष्य को दांव पर लगा कर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया।
उसके बाद एक नरसंहारी को न्यायलय द्वारा क्लीन चिट दे दी जाती है। कोर्ट के इस फैसले ने न्यायलय की कार्यपद्द्ति पर सवालिया निशान लगा कर दुनिया भर को हैरान कर दिया था। 2002 के बाद से हिन्दू आतंकवाद के साथ साथ तानाशाही अपने चरम पर है। जिसमें कटटर हिन्दुओं के साथ साथ देश का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया आज मोदी का दाहिना हाथ बन बैठा है। 7 सालों में तना शाही का आलम ये है की 84 साल के बीमार बुजुर्ग को जंजीर में कैद कर दिया जाता है उन्हें बेल नहीं दी जाती इन जैसे बहुत से समाज सेवी जेलों में बंद है ये अपने आप में एक अकेला केस नहीं थे।


अब सवाल उठता है की आखिर मोदी सरकार को 84 साल के बीमार बुजुर्ग से मोदी को भला क्या खतरा हो सकता है? तो हम बताते हैं मोदी को हर उस इंसान से खतरा जो मोदी की कुर्सी हिलाने की कोशिश करेगा,हर उस इंसान से मोदी को खतरा है है जो देश की जनता को सरकार की तानाशाही से अवगत कराएगा, मोदी को हर उस पत्रकार से खतरा हो लोगों को मोदी की गलत नीतियों विरुद्ध लोगों में चेतना
जगायेगा।
तानाशही का एक डोर होता है जो अपने चरम पर जाता उसके बाद उस तानाशाही का पतन भी होने लगता है यही हाल मोदी की टनाशी का भी है आज चरम है तो कल पतन भी होगा।


एक बेगुनाह पत्रकार को जेल में डालोगे तो हज़ार पतकार आपकी तानाशाही के विरुद्ध आवाज़ उठाएंगे, एक समाजसेवी को जेल में डालोगे तो हज़ार समाजसेवी मजलूमों की आवाज़ उठाने के लिए खड़े हो जायेंगे। आपके पास टाइम था या तो आप अपनी गलती सुधार कर इतिहास में अपने नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा सकते थे लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते प्रकृति का नियम है सतयुग से लेकर आज तक हर तानाशाही का नाम इतिहास के काले पन्नो में ही दर्ज हुआ है।

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