मोदीराज में भारत में करोड़ों लोग सामाजिक और आर्थिक असामनता का शिकार है। अमीरों और गरीबों के बीच की खाई चिंताजनक तरीके से बढ़ रही है। प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पिछले एक साल में भारत में गरीबों की संख्या दोगुनी हो गई है। पहली बार भारत में खरबपतियों की संख्या एक हजार के पार हो गई है, तो दूसरी रिपोर्ट के अनुसार देश में करीब छह करोड़ लोग गरीब हो गए हैं।
प्यू रिसर्च सेंटर के रिकोर्ड के अनुसार, भारत में एक दिन में 150 रुपये भी नहीं कमा पाने वाले लोगों की संख्या में पिछले एक साल में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। महामारी के चलते तेज हुई आर्थिक सुस्ती के चलते गरीब लोगों की संख्या एक साल में छह करोड़ बढ़ गई है। अब देश में गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ हो गई है।
भारत 45 साल बाद फिर से मास पावर्टी वाला देश बन गया है। 1974 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब देश में गरीबों की इतनी संख्या बढ़ी है।
ये आंकड़ें तब और चिंता का विषय बन जाते हैं जब अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों की संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोतरी की खबरें आती रहती हैं। एक दिन पहले जारी आईआईएफएल वेल्थ हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2021 के अनुसार, एक दशक में देश में खरबपतियों की संख्या दस गुना से भी अधिक हो गई है। कोरोना संकट और लोकडाउन के चलते लोगो को बहुत सी मुसीबतो का सामना करना पड़ा और लाखो लोगो की नौकरीया भी चली गई। पर इस दौरान, एशिया के पहले सबसे अमीर शख्स हैं अंबानी और तीसरे सबसे अमीर हैं अडानी। नवंबर महीने में संपत्ति के 1800% से बढ़ने के बाद अडानी एशिया के सबसे अमीर शख्श बन गए थे। करोड़ो लोगो की जि़न्दगी अस्त वस्त हो गई लेकिन पीएम मोदी के करीबी उद्योगपतियों अडानी और अबानी को सबसे अमीर बनने की होड़ है।
पेरिस स्थित वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब ने ‘वर्ल्ड इनइक्वलिटी इंडेक्स रिपोर्ट’ जारी कर बताया था कि भारत में सबसे संपन्न 1 प्रतिशत लोग देश की 22 प्रतिशत आय कमाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुल आबादी के आधे लोगों (50%) मात्र 13 प्रतिशत आय कमाते हैं।
देश की वयस्क जनसंख्या की औसत आय 2,04,200 रूपए है। देश की आधी आबादी 53,610 रूपए कमाती है जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी इसका 20 गुना यानी 11,66,520 रूपए कमाती है। इन्हीं 10 प्रतिशत लोगों की आय देश की कुल आमदनी का 57 प्रतिशत है।
रिपोर्ट के अनुसार निजी संपत्ति 1980 में 290% से बढ़कर 2020 में 560% हो गई।