देवी-देवताओं के कैलेंडर लगाने परम्परा अभी तक देश से रूखसत नहीं हुई है लेकिन इन तस्वीरों का चितेरा अब हमारे बीच नहीं है। मशूहर कैलेंडर आर्टिस्ट लियाकत अली लम्बी बीमारी के चलते इस दुनिया से विदा हो गए। कल रात (12 बजे 13 जून मंगलवार) करीम नगर स्थित अपने निवास पर उन्होने आखिरी सांस ली।

भारतीय घरों में कैलेंडर लगाने की पुरानी परंम्परा रही है। हिन्दू परिवार हो या कोई मुस्लिम फैमली, सभी लोगों के घरों पर दिवारों की शोभा या पूजा स्थल पर हम भगवान या अपने अराध्य की मूरत लगाना नहीं भूलते। धार्मिक भावनाओं को चेहरा देने वाले मेरठ के रस्तोगी स्टूडियो का आखिरी सितारा लियाकत अली भी कल रात इस संसार से विदा हो गए।

आमतौर पर हम जो भी भगवान का या कोई धार्मिक कैलेंडर देखते है उसमें नीचे रस्तोगी स्टूडियो लिखा होता है। इन सभी कलाकृतियों के जनक योगेन्द्र रस्तोगी और लियाकत अली थे। एक लम्बें समय से धर्म को चेहरा देने वाले यह दोनों कलाकार सारी दुनिया में मेरठ का नाम रोशन कर रहे थे और आस्था को चेहरा देकर हर भारतीय घर में अपनी कला के माध्यम से जाने पहचाने जाते थे।

हजारों कैलेंडरों की मूल कलाकृति का निर्माण इन दोनों कलाकारों ने ही किया था। इन तस्वीरों को बनाने वाला आखिरी दीया भी लियाकत अली के रूप में अब बुझ चुका है जबकि योगेन्द्र रस्तोगी जी का निधन 2015 में ही हो गया था। उनके बाद स्टूडियो को चलाने की जिम्मेदारी लियाकत अली पर आ गई थी।

आप पिछले काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। 71 वर्ष तक आप कला की सेवा को अंजाम देते रहे। आज भी उनके बनाये राधा कृष्ण, शिव पार्वती, राम सीता, मक्का मदीना, काबा शरीफ का सजीव चित्रण भारतीय घरों की शोभा है। मेरठ के बुढ़ाना गेट स्थित प्रहलाद वाटिका में स्थित स्तोगी स्टूडियों आप साथ 52 वर्षों से भी अधिक रहा। भारत का शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां आपकी बनी कलाकृति कैलेंडर के रूप में मौजूद ना हो।

स्वभाव से बेहद शांत और गम्भीर लियाकत साहब आजीवन अपनी साधना में लीन रहे और दुनिया को उनकी धार्मिक अस्थाओं के चेहरों से रूबरू कराते रहे।

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