9 हफ्ते की गर्भवती फ्रैंकिलीन पढ़ील्हा उस रोज हॉस्पिटल लायी गयी तो वे होश खो बैठी थी. पिछले कुछ समय से वे सर दर्द, गर्दन के पिछले हिस्से मे दर्द की शिकायत कर रही थी, उन्हें उल्टिया हो रही थी. उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था. तीन दिन बाद वे “ब्रेन डेड” थी. यानी उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. पर अजीब बात थी उनके भीतर मौजूद ” दो नन्हे दिल ” पुरजोर तरीके से धड़क रहे थे.उनके शरीर के दूसरे हिस्से काम कर रहे थे. 22 साल की लड़की पल भर मे अब वेंटीलेटर पर थी.
“बच्चो के लिए ज्यादा उम्मीद ना रखे ” उस पिता को बतलाया गया.जो खुद 24 का था .ये भी कहा गया कि “जैसे ही उनके छोटे दिल धड़कना बंद कर देंगे, वे गैजेट्स बंद हो जायेगे “
पर वे दिल धड़कना बंद नहीं हुए.
दक्षिण ब्राजील के नोसो सेन्होरा डो रोशियो अस्पताल में न्यूरोलॉजिकल आईसीयू के प्रमुख “डॉ. डाल्टन रिवाबेम” ने तय किया वे इन बच्चों के साथ आखिरी दम तक रहेंगे. “फ्रेंकिएलेन के सभी अंग बरकरार थे और काम कर रहे थे जैसे कि वह भी चाहती थी के उसके बच्चे रहे.
पर चेलेंज बहुत सारे थे और लंबे थे. सबसे बड़ा चेलेंज था बच्चों के विकास के लिए, अंगों के कार्यों को निरंतर बनाए रखना.
दबाव बनाए रखने, ऑक्सीजन बनाए रखने, निरंतर पोषण और हार्मोनल संतुलन बनाए रखने के लिए दवाओं के इस्तेमाल के अलावा और कई मुश्किलें थी.अस्पताल में लंबे समय तक रहने और ट्यूबो के साथ रहने के कारण इन्फेकशन के चांस ज्यादा थे तो एंटीबायोटिक दवा की सही डोज़, रोजाना माँ का बी पी मापना और मेन्टेन करना,रोज मॉनिटरिंग. पर अब जैसे पूरे अस्पताल का स्टॉफ भी बच्चों के साथ हो गया था.नर्सो ने माँ के पेट को धीरे से सहलाकर, गाकर और अंदर के बच्चों से बात करना शुरू किया ताकि वे माँ के प्यार की कमी महसूस ना करें ! उसे मिस ना करें.वो रोज़ उनसे बात करती और ये कहती “हम तुमसे प्यार करते हैं”
और ये कवायद 4 महीने तक चली , यानी 123 दिन !
फिर तय हुआ के उन्हें डिलिवर् किया जाए.
” c section डिलीवरी” के माध्यम से बच्चे आख़िरकार 7 महीने में, समय से पहले आये. नन्हें फरिश्तों को देखकर अस्पताल में हर कोई रो पड़ा.एना विटोरिया का वजन 1.4 किलोग्राम था, जबकि उनके भाई आसफ का वजन 1.3 किलोग्राम.
माँ जाहिर हैं अब नहीं रुकी , जैसे वो इसी वक़्त के लिए रुकी थी.वेंटिलेटर बंद करने के बाद उनका दिल और किडनी दो अलग अलग लोगो की जिंदगी बचाने के लिए दे दी गयी.
पूरा ब्राजील अब तक इन बच्चो से वाकिफ हो चूका था. लोगों ने परिवार के लिए हजारों डॉलर जुटाए.पर जिंदगी के शुरूआती कुछ दिन उन्हें असल दुनिया मे सर्वाइव भी करना था.लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई थी,तीन महीने वे इन्क्यूबेटरों में रहे. मई में उन्हें छुट्टी दे दी गई.
P. S – उम्मीद और हौसला भी शायद कोई जुड़वा शै हैं. कोई मुझसे पूछता हैं क्या मौजजा होते हैं, चमत्कार होते हैं. मै बुदबुदाता हूं “हाँ “
अभी आदमी की जात पर यकीन कायम हैं.
डा अनुराग आर्या

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