गाज़ियाबबाद : लोनी, मुस्लिम बुज़ुर्ग अब्दुल समद सैफी कांड पर जहाँ उप पुलिस इसे साम्प्रदायिक रंग देने को इंकार कर रही है और मामले पर लीपा पोती करने की कोशिश कर रही है वहीं इस मामले में अब पीड़ित समद के बेटे बब्लू सैफी का कहना है की “पुलिस गलत कह रही है कि उनके वालिद ताबीज बेचने का काम करते हैं। हमारे परिवार में कोई भी ये काम नहीं करता है, हम पेशे से बढ़ई है। पुलिस सही बात नहीं बता रही है, उन्हें इस मामले की जांच कर सच्चाई सामने लाने दीजिए उन्होंने कहा, हमने 6 जून को लोनी पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर एक पुलिसकर्मी ने कहा, चचा दाढ़ी कटने में कौन सी बड़ी बात है। लेकिन हमारे साथ पुलिस स्टेशन गए एक व्यक्ति ने नाराजगी में कहा कि दाढ़ी बहुत से मुस्लिमों के लिए बेहद पाक चीज है।” पीड़ित बेटे का कहना है कि पिता ने लिखित शिकायत में उनके साथ हुए दुर्व्यवहार का वर्णन किया है, लेकिन पुलिस ने जो FIR लिखी है, उसमें उनके मुख्य विवरण को शामिल नहीं किया गया है।
वायर की रिपोर्ट के अनुसार ” लिखित शिकायत में शामिल कई महत्वपूर्ण जानकारियां FIR से गायब हैं, SP इराज राजा के अनुसार ‘पहली प्राथमिकी, जो 7 जून को दर्ज की गई थी, में पीड़ित ने किसी का नाम नहीं लिया और न ही हमें अपहरण, पिटाई और जय श्री राम का नारा लगाने के लिए मजबूर करने के बारे में बताया।’
पुलिस का कहना है कि पीड़ित ने पुलिस को जो बताया और वायरल वीडियो में उसके द्वारा लगाए गए आरोपों के बीच एक विसंगति है, जबकि उनके बेटे बब्बू ने द वायर को बताया कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि पुलिस ने खुद FIR का मसौदा तैयार किया और सैफी की लिखित शिकायत में शामिल कई विवरणों को नजरअंदाज कर दिया।
मंगलवार की रात सैफी द्वारा लिखित शिकायत की कॉपी हासिल करने के बाद द वायर ने दस्तावेज के बारे में गाजियाबाद पुलिस से प्रतिक्रिया हासिल करने की कई कोशिश की। हालांकि, इस खबर को लिखे जाने तक पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया। अगर वे कोई जवाब देते हैं तो हम उसे यहां स्टोरी में अपडेट करेंगे।
सैफी की लिखित शिकायत, ‘जिसकी पुष्टि उनके परिवार ने द वायर से की थी, प्रामाणिक थी और पिटाई के एक दिन बाद 6 जून को की गई थी, जिसमें न केवल पीड़ित को ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए मजबूर किए जाने की बात कही गई थी, बल्कि यह भी कहा गया था कि जब उन्होंने पानी मांगा तो उन्हें हमलावरों का पेशाब पीने के लिए कहा गया।वहीं पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए आदिल के परिजनों का कहना है की आदिल तो जब मालूम हुआ की वहां की घटना स्थल पर मुस्लिम बुज़ुर्ग को पीटा जा रहा है तो आदिल वहां उस मुलिम बुज़ुर्ग को बचने गया था पुलिस ने निर्दोष आदिल को गिरफ्तार कर लिया ताकि मामले पर लीपा पोती कर इसे आपसी झगड़ा का मामला बना जा सके इस तरह उत्तर प्रदेश पुलिस की भूमिका भी शक के दायरे में आ रही है।
जैसा की सब जानते ही हैं की उत्तर प्रदेश में नाकामयाबी का दूसरा नाम बन चुके योगी आदित्यनाथ आर्थिक क्षति, महंगाई, बेरोजगारी, गुंडागर्दी और तानाशाही के लिए जाने और पहचाने जाने लगे है। वहीं योगी के उत्तर प्रदेश में अपराध बहुत छोटी और आम बात हो गयी है वहीं अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो गए हैं की उन्हें लूटपाट हत्या बलात्कार करने में ज़रा भी संकोच नहीं करते हैं।
बात करें मुस्लिम और दलित वर्ग की तो बीजेपी आने के बाद तो हाल ये हो गया है की मुस्लिमों और दलितों की हत्या करना गौरव का प्रतीक माना जाने लगा है। किसी भी मुस्लिम की भीड़ द्वारा हत्या करने के बाद उसके हत्यारों को सम्मान पूर्वक नज़रों से देखा जाता है। हत्यारों के सम्मान में बैठक और रैलियां निकाली जाती है। फूलों की मालाओं से नेताओं द्वारा हत्यारों स्वागत किया जाता है और फिर भगवा हत्यारों को पार्टी में नियुक्त कर लिया जाता है जिससे अपराधियों के हौंसले बुलंद हो गए हैं। बात करें न्याय की तो कानून भी इन भगवा आतंकियों के सामने हाथ जोड़े खड़े नज़र आ रहा है।
हालात ये हैं की पुलिस भी मुस्लिमों को आतंकवादी देश द्रोही कहने से संकोच नहीं करती। भीड़तंत्र द्वारा की गयी मुस्लिम हत्याओं में सभी की साथ गांठ बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ रहती है इसलिए प्रशासन इन हत्यारों का बाल भी बांका नहीं कर पाता। जब तक इन भगवा हत्यारों को धर्म के आधार पर सरकार का समर्थन मिलता रहेगा तब तक इन नृशंस भगवा आतंकवादियों के हौंसले बढ़ते रहेंगे, वर्तमान सरकार अपनी कुर्सी हो वोट बैंक की खातिर कभी भी किसी भी हाल में इन रक्त पिपासुओं के खिलाफ कानून नहीं बनाएगी क्योंकि वर्तमान सरकार की नींव ही निर्दोष मुस्लिमों की लाशों पर रखी गयी है।